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त्वम॑ग्ने॒ अदि॑तिर्देव दा॒शुषे॒ त्वं होत्रा॒ भार॑ती वर्धसे गि॒रा। त्वमिळा॑ श॒तहि॑मासि॒ दक्ष॑से॒ त्वं वृ॑त्र॒हा व॑सुपते॒ सर॑स्वती॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvam agne aditir deva dāśuṣe tvaṁ hotrā bhāratī vardhase girā | tvam iḻā śatahimāsi dakṣase tvaṁ vṛtrahā vasupate sarasvatī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। अ॒ग्ने॒। अदि॑तिः। दे॒व॒। दा॒शुषे॑। त्वम्। होत्रा॑। भार॑ती। व॒र्ध॒से॒। गि॒रा। त्वम्। इळा॑। श॒तऽहि॑मा। अ॒सि॒। दक्ष॑से। त्वम्। वृ॒त्र॒ऽहा। व॒सु॒ऽप॒ते॒। सर॑स्वती॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:1» मन्त्र:11 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:19» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापकविषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) प्रकाशमान् ! (अग्ने) विद्या देनेवाले विद्वान् ! (त्वम्) आप (दाशुषे) दानशील शिष्य के लिये (अदितिः) अन्तरिक्ष प्रकाश के समान विद्या गुणों का प्रकाश करनेवाले हैं। (त्वम्) आप (होत्रा) ग्रहण करने योग्य (भारती) विद्या धारण करनेवाली बालिका के समान होते हुए (गिरा) सुन्दर शिक्षा और विद्यायुक्त वाणी से (वर्द्धसे) वृद्धि को प्राप्त होते हैं। (त्वम्) आप (दक्षसे) विद्या बल के देने के लिये (शतहिमा) सौ वर्ष जिसकी आयु वह (इळा) स्तुति के योग्य अध्यापिका के समान (असि) हैं। हे (वसुपते) धन के पालनेहारे (त्वम्) आप (वृत्रहा) मेघहन्ता सूर्य के समान तथा (सरस्वती) प्रज्ञान विज्ञानयुक्त वाणी के समान हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। अच्छी विद्या का पढ़ाने हारा शास्त्र का पारगन्ता विद्वान् जन माता के समान पालना करता है और सब विषयों से उत्तमगुणों को देता है। उससे शिष्यजन शीघ्र विद्याबलयुक्त होते हैं ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापकविषयमाह।

अन्वय:

हे देवाऽग्ने त्वं दाशुषेऽदितिरसि त्वं होत्रा भारती सन् गिरा वर्द्धसे त्वं दक्षसे शतहिमा इडाऽसि। हे वसुपते त्वं वृत्रहा तथा सरस्वत्यसि ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (अग्ने) विद्याप्रद विद्वन् (अदितिः) द्यौरिव विद्यागुणप्रकाशकः (देव) प्रकाशमान (दाशुषे) दात्रे (त्वम्) (होत्रा) आदातुमर्हे (भारती) या विद्या धर्त्रीव (वर्द्धसे) (गिरा) सुशिक्षाविद्यायुक्तया वाचा (त्वम्) (इळा) स्तोतुमर्हा (शतहिमा) शतं हिमानि यस्या आयुषि सा (असि) (दक्षसे) बलाय विद्याबलदानाय (त्वम्) (वृत्रहा) मेघहन्ता सूर्यइव (वसुपते) धनस्य पालक (सरस्वती) प्रशस्तविज्ञानयुक्तेव ॥११॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सद्विद्याऽध्यापकः शास्त्रपारङ्गतो विद्वान् मातृवत्पालयति सर्वतः सद्गुणान् ददाति ततः शिष्याः शीघ्रं विद्याबलयुक्ता भवन्ति ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. चांगली विद्या देणारा अध्यापक, शास्त्रात पारंगत विद्वान मातेप्रमाणे पालन करतो व सर्व प्रकारे उत्तम गुण देतो, त्यामुळे शिष्यगण लवकर विद्याबल प्राप्त करतात. ॥ ११ ॥